इंदौर | आखिरकार लंबे सस्पेंस के बाद मंगलवार सुबह साढ़े दस बजे खचाखच भरे हाईकोर्ट की डबल बैंच ने 29 गांवों को इंदौर नगरीय सीमा में शामिल करने का नोटिफिकेशन खारिज कर दिया। इससे वार्ड परिसीमन और आरक्षण प्रक्रिया को झटका लगा है। यदि शासन हाईकोर्ट के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले आता है तो ही चुनाव कराना संभव हो पाएगा।
शहर को विस्तार देने के संबंध में हाईकोर्ट में लगी जनहित याचिका में उच्च न्यायालय ने मंगलवार को पीठ ने अहम फैसला सुनाते हुए शासन का गजट नोटिफिकेशन खारिज कर दिया। हालांकि हाईकोर्ट ने नगर निगम चुनाव को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की।
इस फैसले से यह तो तय हो गया है कि 29 गांव जो नगर निगम सीमा में जोड़े गए हैं, उनमें तो 28 नवंबर को चुनाव नहीं हो सकते। माना जा रहा है कि राज्य सरकार जल्द ही इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाएगी और चुनाव प्रक्रिया शुरू होने का हवाला देते हुए इस निर्णय पर स्टे की मांग करेगी।
वरिष्ठ अभिभाषक अनिल त्रिवेदी ने कोर्ट के फैसले के बाद कहा कि अदालत ने मेरी जनहित याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए शासन द्वारा 14 मार्च 1914 को जारी अधिसूचना निरस्त कर दी है। साथ ही शासन को निर्देश दिए हैं कि इन जोड़े गए 23 गांवों को बाहर कर नए सिरे से अधिसूचना जारी करे। हालांकि उन्होंने कहा कि शासन चाहे तो 69 वार्डों में चुनाव करा सकता है, लेकिन यह शासन और चुनाव आयोग को तय करना है कि वह कैसे प्रक्रिया को पूर्ण करता है।
उल्लेखनीय है कि शासन 23 गांवों को जोड़ने के बाद इंदौर में 85 वार्ड बनाए गए हैं, जबकि पूर्व में 69 वार्ड ही थे। चूंकि शासन वार्ड परिसीमन और आरक्षण की प्रक्रिया को पूरा कर चुका है, अत: ऐसी स्थिति में नए सिरे से परिसीमन इतने कम समय में संभव ही नहीं हो पाएगा। अत: उच्चतम न्यायालय से हाईकोर्ट के इस फैसले पर स्टे नहीं मिलता है तो सरकार के लिए चुनाव कराना लगभग नामुमकिन ही होगा।
जब अनिल त्रिवेदी से पूछा गया कि आखिर शहर के विस्तार के गजट नोटिफिकेशन में गड़बड़ी कहां है तो उन्होंने बताया कि गांवों को शहर में मिलाने की प्रक्रिया सही तरीके से पूरी नहीं की गई। दरअसल, गांवों को शहर में मिलाने का प्रस्ताव ग्राम पंचायत की तरफ से राज्यपाल के माध्यम से आता है। फिर अध्ययन के बाद तय किया जाता है कि गांवों को नगर निगम या नगर पंचायत में शामिल किया जाए। इंदौर में सही कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। यहां नगर निगम ने गांवों को नगरीय सीमा में शामिल करने का फैसला किया है, जो वैधानिक रूप से गलत है। इस संबंध में सरकार पहले भी कोर्ट में शिकस्त खा चुकी है। मगर उसने कोई सबक नहीं लिया।
इंदौर प्रशासन समेत प्रदेश सरकार के लिए अदालत का यह फैसला बड़ी मुश्किल का सबब बन गया है। क्योंकि किसी भी सूरत में जनवरी 2015 तक चुनाव प्रक्रिया पूर्ण करनी होगा क्योंकि वर्तमान परिषद का कार्यकाल जनवरी में समाप्त हो रहा है। अब सरकार की एकमात्र आस सुप्रीम कोर्ट से हो सकती है। यदि वहां से भी निराशा मिलती है तो 69 वार्डों पर ही चुनाव कराने होंगे। इसके लिए नए सिरे से अधिसूचना जारी करना होगी तथा वार्ड आरक्षण की प्रक्रिया भी फिर से करना होगी।
अब शासन और राज्य निर्वाचन आयोग दोनों फैसला करेंगे कि चुनाव को लेकर क्या करना है। वहीं शासन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की भी तैयारी कर ली है।
अब यह है विकल्प
- शासन चाहे तो पुरानी स्थिति में 29 गांव बाहर होने पर 69 वार्ड में चुनाव करा सकती है, लेकिन इसके लिए फिर से आरक्षण प्रक्रिया अपनाना होगी, इसमें भी एक माह का समय लगेगा।
- शासन चाहे तो 29 गांव के लिए फिर नोटिफिकेशन करे और 85 वार्ड पर ही चुनाव कराए, लेकिन इसके लिए दोबारा प्रक्रिया करना होगी इसमें भी दो-तीन माह का समय लगेगा।
- शासन सुप्रीम कोर्ट जाकर स्टे लाए, लेकिन तब भी चुनाव पर असमंजस, 12 नवंबर नामांकन की अंतिम तारीख है।
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